मैं एक हूँ
मै
ही
हिंदू,
मै
ही
मुस्लिम,
मै
ही
सिख,
मै
ही
ईशाई,
मै
ही
बुद्ध,
मै
ही
पारसी,
मै
ही
जैन,
फिर
क्यों
झगड़ा?
फिर क्यों
नहीं
चैन ?
मै
एक
हूँ,
मै
नेक
हूँ,
आईये मिल - जुल कर रहें।
एक साथ प्रगति की धारा मे बहें।।
जयप्रकाश पंवार ''जेपी ''
शनिवार, 17 अगस्त 2013
बुधवार, 14 अगस्त 2013
देश को सलाम
''देश को सलाम''
करते रहो
भ्रस्टाचार,
बदलते रहो
सरकार,
करो अत्याचार,
फिर भी
करते रहो
देश भक्ति का
काम,
देश को सलाम।
ठेके लो,
कमीशन दो,
भरते रहो
बक्से,
लॉकर,
अर
दीवान,
जब भी
कोई सज्जन
मिले,
करते रहो
दुआ सलाम,
देश को सलाम। .
करो मत
काम,
फूंको गाड़ियाँ - रेल,
जलाओ घर,
बदलो न बदलो
टोपियाँ,
खाते रहो
सेवियाँ,
गले मिलते रहो
चाहे हो
सडकों पे ज़ाम,
चलता रहे देश,
चलता रहे काम
देश को सलाम।
मरते रहें
सैनिक,
घुसते रहें
दुश्मन,
फिर भी
कहते रहो
शान्त - शान्त,
जिनको है
दिक्कत,
मलते रहो बाम,
दर्द मिटता नहीं
फिर भी,
जलाते रहो मशाल,
लड़ते रहें,
भिड़ते रहें
जाना है लाम
दोस्तों !
करते रहो
देश को सलाम।।
जय हिन्द
जयप्रकाश पंवार ''जेपी ''
करते रहो
भ्रस्टाचार,
बदलते रहो
सरकार,
करो अत्याचार,
फिर भी
करते रहो
देश भक्ति का
काम,
देश को सलाम।
ठेके लो,
कमीशन दो,
भरते रहो
बक्से,
लॉकर,
अर
दीवान,
जब भी
कोई सज्जन
मिले,
करते रहो
दुआ सलाम,
देश को सलाम। .
करो मत
काम,
फूंको गाड़ियाँ - रेल,
जलाओ घर,
बदलो न बदलो
टोपियाँ,
खाते रहो
सेवियाँ,
गले मिलते रहो
चाहे हो
सडकों पे ज़ाम,
चलता रहे देश,
चलता रहे काम
देश को सलाम।
मरते रहें
सैनिक,
घुसते रहें
दुश्मन,
फिर भी
कहते रहो
शान्त - शान्त,
जिनको है
दिक्कत,
मलते रहो बाम,
दर्द मिटता नहीं
फिर भी,
जलाते रहो मशाल,
लड़ते रहें,
भिड़ते रहें
जाना है लाम
दोस्तों !
करते रहो
देश को सलाम।।
जय हिन्द
जयप्रकाश पंवार ''जेपी ''
रविवार, 11 अगस्त 2013
पहाड़ जिन्दा है.
पहाड़ जिन्दा है.
फिर उगेंगे
मेरे पहाड़ पर
बर्फ़, पेड़, बुग्याल
अर हरियाली,
फिर उगेंगे
घर - मकान,
खेत - खलिहान
फिर बनेंगे
पुल,
नदी किनारे
बनेंगे
खेल के मैदान,
लगेंगे
मेले अर थौल,
बजेंगे भंकोरे
गुजेंगे ढोल,
जो हुआ
पहाड़ ने
कब किया,
पहाड़ तो
आज भी जिन्दा है,
पहाड़ को पता है
धरती उजड़ेगी,
खेत बहेंगे
नदियाँ उफनेंगी
बर्फ पिघलेगी
पहाड़ टूटेंगे,
पहाड़ को पता है
जो नहीं पूजते प्रकृति
दम भरते है
उसे लूटने का,
पिटने का
करते है उपहास
उजाड़ते है
नदियाँ,
देव स्थल,
खेत,
गावं,
स्कूल
अर पुल
लेकिन,
पहाड़
आज भी खड़ा है,
पहाड़ी आज भी खड़ा है.
उजड़े है वो
जो आये थे
उजाड़ने,
लूटने,
बिखरने,
अब लगे है
खिसकने।
जयप्रकाश पंवार ''जेपी ''
फिर उगेंगे
मेरे पहाड़ पर
बर्फ़, पेड़, बुग्याल
अर हरियाली,
फिर उगेंगे
घर - मकान,
खेत - खलिहान
फिर बनेंगे
पुल,
नदी किनारे
बनेंगे
खेल के मैदान,
लगेंगे
मेले अर थौल,
बजेंगे भंकोरे
गुजेंगे ढोल,
जो हुआ
पहाड़ ने
कब किया,
पहाड़ तो
आज भी जिन्दा है,
पहाड़ को पता है
धरती उजड़ेगी,
खेत बहेंगे
नदियाँ उफनेंगी
बर्फ पिघलेगी
पहाड़ टूटेंगे,
पहाड़ को पता है
जो नहीं पूजते प्रकृति
दम भरते है
उसे लूटने का,
पिटने का
करते है उपहास
उजाड़ते है
नदियाँ,
देव स्थल,
खेत,
गावं,
स्कूल
अर पुल
लेकिन,
पहाड़
आज भी खड़ा है,
पहाड़ी आज भी खड़ा है.
उजड़े है वो
जो आये थे
उजाड़ने,
लूटने,
बिखरने,
अब लगे है
खिसकने।
जयप्रकाश पंवार ''जेपी ''
सोमवार, 11 मार्च 2013
पहाड़ और पहाड़ी
पहाड़ और पहाड़ी
पहाड़ ने कहा पहाड़ी से
तू इतनी झुकी क्यों?
पहाड़ी ने कहा
मै झुकी नहीं खड़ी हु,
पहाड़ी ने कहा पहाड़ से
पर तू इतना रूखा क्यों?
पहाड़ ने कहा पहाड़ी
तू इतनी हरी क्यों?
पहाड़ी ने कहा
मैंने तो धारे है वस्त्र पेड़ो के,
पहनी है माला नदियों की
पर तुझे इससे क्या?
पहाड़ ने कहा बस यु ही !
बोर हो रहा था
तो पूछ लिया?
पर तू इतनी रुखी रुखी क्यों?
रूखे तो तुम हो
पहाड़ी ने कहा?
जो सालो से सामने खड़े हो,
कितने बसंत आये,
कितने पतझड़ गुजरे,
तुम तो चमकते रहते हो,
पर पिघलते कभी नहीं?
टूटते कभी नहीं?
तुम तो निर्दयी हो,
अक्खड़
पहाड़।
जयप्रकाश पंवार "जेपी"
पहाड़ ने कहा पहाड़ी से
तू इतनी झुकी क्यों?
पहाड़ी ने कहा
मै झुकी नहीं खड़ी हु,
पहाड़ी ने कहा पहाड़ से
पर तू इतना रूखा क्यों?
पहाड़ ने कहा पहाड़ी
तू इतनी हरी क्यों?
पहाड़ी ने कहा
मैंने तो धारे है वस्त्र पेड़ो के,
पहनी है माला नदियों की
पर तुझे इससे क्या?
पहाड़ ने कहा बस यु ही !
बोर हो रहा था
तो पूछ लिया?
पर तू इतनी रुखी रुखी क्यों?
रूखे तो तुम हो
पहाड़ी ने कहा?
जो सालो से सामने खड़े हो,
कितने बसंत आये,
कितने पतझड़ गुजरे,
तुम तो चमकते रहते हो,
पर पिघलते कभी नहीं?
टूटते कभी नहीं?
तुम तो निर्दयी हो,
अक्खड़
पहाड़।
जयप्रकाश पंवार "जेपी"
पहाड़
पहाड़
पहाड़ ने कहा पहाड़ से,
तू पहाड़ क्यों ?
पहाड़ ने कहा पहाड़ से,
तू ये पूछता है क्यों ?
पहाड़ ने कहा,
ये मै नहीं पूछ रहा,
लोग पूछ रहे है,
कि पहाड़ पहाड़ क्यों ?
पहाड़ ने कहा पहाड़ से,
कुछ य़ू
लोग पहाड़,
फिर आते नहीं क्यों ?
जयप्रकाश पंवार 'जेपी '
पहाड़ ने कहा पहाड़ से,
तू पहाड़ क्यों ?
पहाड़ ने कहा पहाड़ से,
तू ये पूछता है क्यों ?
पहाड़ ने कहा,
ये मै नहीं पूछ रहा,
लोग पूछ रहे है,
कि पहाड़ पहाड़ क्यों ?
पहाड़ ने कहा पहाड़ से,
कुछ य़ू
लोग पहाड़,
फिर आते नहीं क्यों ?
जयप्रकाश पंवार 'जेपी '
गुरुवार, 7 मार्च 2013
संकल्प
संकल्प
मै
महिला हू,
लकिन
जो आप सोचते हो
मै वो नहीं ?
मै तो
पूरा पहाड़ हू,
पूरा जीवन,
मै
हाड़ माँस से बना
सिर्फ जीवित पुतला
नहीं हू ,
मै पहाड़ की महिला हू,
अगर
मै
झूट बोल रही हू,
तो मेरे ये चित्र
क्या कह रहे है?
यही कह रहे है ना,
की मै नहीं
तो तुम भी नहीं,
मै नहीं
तो पहाड़ भी नहीं,
जीवन भी नहीं,
तो आज
सोच लो!
संकल्प ले लो!
की मै तुमसे
अलग नहीं,
तुम मुझसे
अलग नहीं,
आओ
मिलजुल कर
आगे बड़े
जयप्रकाश पंवार "जेपी "
मै
महिला हू,
लकिन
जो आप सोचते हो
मै वो नहीं ?
मै तो
पूरा पहाड़ हू,
पूरा जीवन,
मै
हाड़ माँस से बना
सिर्फ जीवित पुतला
नहीं हू ,
मै पहाड़ की महिला हू,
अगर
मै
झूट बोल रही हू,
तो मेरे ये चित्र
क्या कह रहे है?
यही कह रहे है ना,
की मै नहीं
तो तुम भी नहीं,
मै नहीं
तो पहाड़ भी नहीं,
जीवन भी नहीं,
तो आज
सोच लो!
संकल्प ले लो!
की मै तुमसे
अलग नहीं,
तुम मुझसे
अलग नहीं,
आओ
मिलजुल कर
आगे बड़े
जयप्रकाश पंवार "जेपी "
मंगलवार, 5 मार्च 2013
उफ़ ये मोहब्बत !
उफ़ ये मोहब्बत !
कोहरे ने कहा
मैं आ गया हू,
धूप ने कहा
मैं सो रहा हू,
ठंड ने कहा
ओड लो
ठिटुरन की कम्बल,
आग ने कहा
सेक लो बदन,
हवा ने कहा
ये फुरवायी
फिर कहाँ,
और
"बर्फ़" चुपचाप सुनती रही !!
वो आते रहे,
जाते रहे,
छूते रहे,
चूमते रहे,
लोटते रहे,
ओंठो से बोलते रहे,
और
'बर्फ' चुपचाप
शिस्कारती रही,
कसमसाती रही,
सिले ओंठो से
कहती रही,
उफ़ ये मोहब्बत !
उफ़ ये मोहब्बत !!
उफ़ ये मोहब्बत !!!
जयप्रकाश पंवार 'जेपी
कोहरे ने कहा
मैं आ गया हू,
धूप ने कहा
मैं सो रहा हू,
ठंड ने कहा
ओड लो
ठिटुरन की कम्बल,
आग ने कहा
सेक लो बदन,
हवा ने कहा
ये फुरवायी
फिर कहाँ,
और
"बर्फ़" चुपचाप सुनती रही !!
वो आते रहे,
जाते रहे,
छूते रहे,
चूमते रहे,
लोटते रहे,
ओंठो से बोलते रहे,
और
'बर्फ' चुपचाप
शिस्कारती रही,
कसमसाती रही,
सिले ओंठो से
कहती रही,
उफ़ ये मोहब्बत !
उफ़ ये मोहब्बत !!
उफ़ ये मोहब्बत !!!
जयप्रकाश पंवार 'जेपी
सोमवार, 25 फ़रवरी 2013
तुमारे लिए
सूरज की
तरह
हो
तुम,
चमकते
ऒज
की
रंगीन
परछाइया,
जहा भी
हो
तुम,
वहा
अँधेरे की
जरुरत
क्या?
प्रकाश की
दमकती,
चमकती,
लौ
हो
तुम,
सूरज की
तरह
हो
तुम,
दूर
आसमा से
देखती,
अट्टाहास
करती,
बिखरती
किरणे,
ले
लेती हो,
बाहुपास
मे
तुम,
तुम्हें
क्या पता?
तुम
तो
जीवन
हो,
जो
जलाती
हो
लौ,
फैलाती
हो,
चहु ऒर
उजियारा,
तुमारे
लिए,
शब्द
कम,
तारीफ़
कम,
तुम
तो,
तुम
हो,
सूरज की
तरह
हो
तुम।
जयप्रकाश पंवार 'जेपी '
रविवार, 24 फ़रवरी 2013
शनिवार, 23 फ़रवरी 2013
रविवार, 17 फ़रवरी 2013
तुम हम (Poem)
तुम हम
कभी तुम
नहीं,
कभी हम
नहीं,
ये
सिलसिला
है
या कि
ठहराव,
ऐ
वक़्त
तू चलता जा,
उड़ता जा,
आता जा,
जाता जा,
तू
आ,
जा,
जा,
आ,
ठहर मत,
सिलसिला बन,
कभी तुम,
कभी हम,
कभी हम,
कभी तुम,
तुम तुम,
हम हम,
हम हम,
तुम तुम,
गुत्थता जा,
मथता जा,
गुनता जा,
बुनता जा,
सुनता जा,
गीत प्रेम के,
कभी सुनाओ तुम,
कभी सुनाये हम,
सिलसिला दर
सिलसिला,
ठहर मत
वक़्त,
तू उड़ता जा,
गाता जा,
हम तुम
तुम हम
जयप्रकाश पंवार 'जेपी '
कभी तुम
नहीं,
कभी हम
नहीं,
ये
सिलसिला
है
या कि
ठहराव,
ऐ
वक़्त
तू चलता जा,
उड़ता जा,
आता जा,
जाता जा,
तू
आ,
जा,
जा,
आ,
ठहर मत,
सिलसिला बन,
कभी तुम,
कभी हम,
कभी हम,
कभी तुम,
तुम तुम,
हम हम,
हम हम,
तुम तुम,
गुत्थता जा,
मथता जा,
गुनता जा,
बुनता जा,
सुनता जा,
गीत प्रेम के,
कभी सुनाओ तुम,
कभी सुनाये हम,
सिलसिला दर
सिलसिला,
ठहर मत
वक़्त,
तू उड़ता जा,
गाता जा,
हम तुम
तुम हम
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