सोमवार, 11 मार्च 2013

पहाड़ और पहाड़ी

पहाड़ और पहाड़ी

पहाड़ ने कहा पहाड़ी से
तू इतनी झुकी क्यों?
पहाड़ी ने कहा
मै झुकी नहीं खड़ी हु,
पहाड़ी ने कहा पहाड़ से
पर तू इतना रूखा क्यों?
पहाड़ ने कहा पहाड़ी
तू इतनी हरी क्यों?
पहाड़ी ने कहा
मैंने तो धारे  है वस्त्र पेड़ो के,
पहनी है माला नदियों की
पर तुझे इससे क्या?
पहाड़ ने कहा बस यु ही !
बोर हो रहा था
तो पूछ लिया?
पर तू इतनी रुखी रुखी क्यों?
रूखे तो तुम हो
पहाड़ी ने कहा?
जो सालो से सामने खड़े हो,
कितने बसंत आये,
कितने पतझड़ गुजरे,
तुम तो चमकते रहते हो,
पर पिघलते कभी नहीं?
टूटते कभी नहीं?
तुम तो निर्दयी हो,
अक्खड़
पहाड़।

जयप्रकाश पंवार "जेपी"

1 टिप्पणी:

  1. एक बेहतरीन कविता।
    परन्तु पहाड़ और पहाड़ी के संवाद गड्ड मड्ड से हो गये हैं।
    आभार।

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