सोमवार, 11 मार्च 2013

पहाड़ और पहाड़ी

पहाड़ और पहाड़ी

पहाड़ ने कहा पहाड़ी से
तू इतनी झुकी क्यों?
पहाड़ी ने कहा
मै झुकी नहीं खड़ी हु,
पहाड़ी ने कहा पहाड़ से
पर तू इतना रूखा क्यों?
पहाड़ ने कहा पहाड़ी
तू इतनी हरी क्यों?
पहाड़ी ने कहा
मैंने तो धारे  है वस्त्र पेड़ो के,
पहनी है माला नदियों की
पर तुझे इससे क्या?
पहाड़ ने कहा बस यु ही !
बोर हो रहा था
तो पूछ लिया?
पर तू इतनी रुखी रुखी क्यों?
रूखे तो तुम हो
पहाड़ी ने कहा?
जो सालो से सामने खड़े हो,
कितने बसंत आये,
कितने पतझड़ गुजरे,
तुम तो चमकते रहते हो,
पर पिघलते कभी नहीं?
टूटते कभी नहीं?
तुम तो निर्दयी हो,
अक्खड़
पहाड़।

जयप्रकाश पंवार "जेपी"

पहाड़

पहाड़

पहाड़ ने कहा पहाड़ से,
तू पहाड़ क्यों ?
पहाड़ ने कहा पहाड़ से,
तू ये पूछता है क्यों ?
पहाड़ ने कहा,
ये मै  नहीं पूछ रहा,
लोग पूछ रहे है,
कि पहाड़ पहाड़ क्यों ?
पहाड़ ने कहा पहाड़ से,
कुछ य़ू
लोग पहाड़,
फिर आते नहीं क्यों ?

जयप्रकाश पंवार 'जेपी '

गुरुवार, 7 मार्च 2013

संकल्प

संकल्प

मै
महिला हू,
लकिन
जो आप सोचते हो
मै वो नहीं ?
मै तो
पूरा पहाड़ हू,
पूरा जीवन,
मै
हाड़ माँस से बना
सिर्फ जीवित पुतला
नहीं हू ,
मै पहाड़ की महिला हू,
अगर
मै
झूट बोल रही हू,
तो मेरे ये चित्र
क्या कह रहे है?
यही कह रहे है ना,
की मै नहीं
तो तुम भी नहीं,
मै नहीं
तो पहाड़ भी नहीं,
जीवन भी नहीं,
तो आज
सोच लो!
संकल्प ले लो!
की मै तुमसे
अलग नहीं,
तुम मुझसे
अलग नहीं,
आओ
मिलजुल कर
आगे बड़े

जयप्रकाश पंवार "जेपी "

मंगलवार, 5 मार्च 2013

उफ़ ये मोहब्बत !

उफ़ ये मोहब्बत !

कोहरे ने कहा
मैं आ गया हू,
धूप ने कहा
मैं सो रहा हू,
ठंड ने कहा
ओड लो
ठिटुरन की कम्बल,
आग ने कहा
सेक लो बदन,
हवा ने कहा
ये फुरवायी
फिर कहाँ,
और
"बर्फ़" चुपचाप सुनती रही !!
वो आते रहे,
जाते रहे,
छूते रहे,
चूमते रहे,
लोटते रहे,
ओंठो से बोलते रहे,
और
'बर्फ' चुपचाप
शिस्कारती रही,
कसमसाती रही,
सिले ओंठो से
कहती रही,
उफ़ ये मोहब्बत !
उफ़ ये मोहब्बत !!
उफ़ ये मोहब्बत !!!

जयप्रकाश पंवार 'जेपी