मंगलवार, 5 मार्च 2013

उफ़ ये मोहब्बत !

उफ़ ये मोहब्बत !

कोहरे ने कहा
मैं आ गया हू,
धूप ने कहा
मैं सो रहा हू,
ठंड ने कहा
ओड लो
ठिटुरन की कम्बल,
आग ने कहा
सेक लो बदन,
हवा ने कहा
ये फुरवायी
फिर कहाँ,
और
"बर्फ़" चुपचाप सुनती रही !!
वो आते रहे,
जाते रहे,
छूते रहे,
चूमते रहे,
लोटते रहे,
ओंठो से बोलते रहे,
और
'बर्फ' चुपचाप
शिस्कारती रही,
कसमसाती रही,
सिले ओंठो से
कहती रही,
उफ़ ये मोहब्बत !
उफ़ ये मोहब्बत !!
उफ़ ये मोहब्बत !!!

जयप्रकाश पंवार 'जेपी

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