रविवार, 11 अगस्त 2013

पहाड़ जिन्दा है.

पहाड़ जिन्दा है.

फिर उगेंगे
मेरे पहाड़ पर
बर्फ़, पेड़, बुग्याल
अर हरियाली,

फिर उगेंगे
घर - मकान,
खेत - खलिहान
फिर बनेंगे
पुल,
नदी किनारे
बनेंगे
खेल के मैदान,
लगेंगे
मेले अर थौल,
बजेंगे भंकोरे
गुजेंगे ढोल,

जो हुआ
पहाड़ ने
कब किया,
पहाड़ तो
आज भी जिन्दा है,

पहाड़ को पता है
धरती उजड़ेगी,
खेत बहेंगे
नदियाँ उफनेंगी
बर्फ पिघलेगी
पहाड़ टूटेंगे,

पहाड़ को पता है
जो नहीं पूजते प्रकृति
दम भरते है
उसे लूटने का,
पिटने का
करते है उपहास
उजाड़ते है
नदियाँ,
देव स्थल,
खेत,
गावं,
स्कूल
अर पुल

लेकिन,
पहाड़
आज भी खड़ा है,
पहाड़ी आज भी खड़ा है.
उजड़े है वो
जो आये थे
उजाड़ने,
लूटने,
बिखरने,
अब लगे है
खिसकने।

जयप्रकाश पंवार ''जेपी ''

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