शनिवार, 9 अक्तूबर 2010

बेटिया


बेटिया,
चुप
क्यों
रहती
है ?

होती
है
उदास
क्यों ?

क्या
घूर
रही
है
कातिल
आंखे ?

जुबान
चुप
क्यों
है ?

बोलती
क्यों
नहीं ?

क्यों,
बता
नहीं
देती
उसे
अपना
वजन ?

जा
चिल्ला
फ़ैल
जा
तू
यंहा
वंहा
जंहा
जंहा

गुरुवार, 7 अक्तूबर 2010

बेटिया

बेटिया,
नहीं
मांगती
हिसाब,
अर
काम की
खैरात,
वो
तो बांटती
है,
यहाँ - वंहा
जंहा - जंहा

बेटिया

बेटिया,
जब
ससुराल
जाती है,
तो
हर आँख
भर - भर
जाती है,
हर आंख
तर - तर
जाती है.

बेटिया

बेटिया
ससुराल
क्यों
जाती है ?

फिर
वापस
क्यों ?
आती है
क्या ?
दूंड
रही
है
घर
अपना

बेटिया

बेटिया,
बिखरती जा
यहाँ वहा
जहा जहा
..............
फिर,
उगाना
नयी घास,
अर
फिर ,
बिखर जाना
फूलो की तरह ,
यहाँ वहा
जहा जहा