गुरुवार, 23 फ़रवरी 2017

धूप

धूप 

सुबह से थक गयी है 
धूप
धीरे - धीरे पहाड़ों से 
उतर रही है धूप. 

धुप्प अँधेरे के बाद
सुबह 
धीरे - धीरे चढ़ रही थी धूप,

खिड़की दरवाजों से 
ताक झांक कर रही थी धूप,

चमकती बर्फीली चोटियों में 
यहाँ -वहाँ, जहाँ -तहां 
पसर रही थी धूप,

चिड़ियों ने छोड़े घोंसले
घने जंगलों से निकल पड़े थे बन्य जीव,
गायों की घंटियाँ घन घना उठी थी 
बच्चों के सज चुके थे बस्ते 
स्कूल के रस्तों पर 
धीरे - धीरे बिख़र रही थी धूप,

बहुत दिनों की बरख़ा के बाद 
आज फिर खिली थी धूप,

सुबह से हो गयी शाम 
अब सोने लगी है धूप। 


जयप्रकाश पंवार 'जेपी ' 

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