बुधवार, 1 फ़रवरी 2017

जय हो लोकतंत्र की !

सदैव की भाँति उत्तराखंड ही नहीं पुरे देश में चुनाव पार्टियों की लड़ाई चुनाव चिन्ह पर नहीं हो रही है, चुनाव चिन्ह तो केवल मात्र टोटका है. ले देकर आखिरकार लोग फिर जाति, क्षेत्र, रिस्तेदारी आदि आदि पर अपने अपने प्रत्यासी को जिताना चाहते हैं, तो ये समझ में नहीं आता कि आखिर चुनाव चिन्ह की जरुरत क्यों है? प्रत्यासी की योग्यता को आधार बनाकर चुनाव लड़े जायें तो संभवतः सही प्रत्यासी का चुनाव हो पाये। ऐसी इस्थितिया देश के सार्वभौमिक स्वरुप को नष्ट भ्रस्ट कर दे रही हैं। डिजिटल भारत का स्वरुप निखरता जा रहा है आशा है भविष्य में देश के लोग ऑनलाइन मताधिकार का प्रयोग देश के किसी भी कोने से कर पायेंगे। चुनावों के इस मौसम में उत्तराखंड के ऐसे कई लोग याद आ रहे हैं जो यहाँ के न होकर भी सदैव के लिये यहाँ के हो गये, उत्तराखंड विस्वविद्यालय आंदोलन के संयोजक स्वामी मन्मथन जी के योगदान को कौन भुला सकता है। यह उत्तराखंड का दुर्भाग्य है कि सही लोगों को लोग जिताते नहीं फिर बाद में पछतावा करते है, फिर पांच साल तक गरियाते रहते हैं। और अपना विकास और भविष्य गँवाते रहते हैं। मेरी अपील है की सही ईमानदार, पढ़े लिखे, जुझारू प्रत्यासी को जितायें और उत्तराखंड का भविष्य तय करें। तब प्रत्यासी किसी छोटी या बड़ी पार्टी का हो या निर्दलीय। इस वक़्त उत्तराखंड के जनगीतकार डॉ. अतुल शर्मा जी की यह कविता "मैंने कहा" समसामयिक लगती है।

एक ने कहा
तुम देहरादून के नहीं हो,
मैंने कहा
मैं यहीं जन्मा हूँ।

एक ने कहा
तुम नहीं हो टिहरी के,
मैंने कहा
मैं डूबती टिहरी को याद करता हूँ?

एक ने कहा
तुम हो कहाँ उत्तरकाशी के ?
मैंने कहा
मैंने भूकंप जिया है,
उसका दर्द लिखा है ?

एक ने कहा
तुम न तो श्रीनगर के हो न पौड़ी के ?
न चमोली के ?
तुम हो ही नहीं अल्मोड़ा के ?
नैनीताल, कौसानी, भवाली के ?
तुम हो ही नहीं उत्तराखंड के ?
तुम न गढ़वाली हो ? न कुमाऊनी ?
तुम हो बहार के ?

मैंने कहा
मै शामिल रहा यहाँ के हर आंदोलनों मै ?

एक ने कहा
जो भी हो तुम कहाँ के हो ?
ये सवाल  है ?

इस पर मैंने कहा दिल्ली से
क्या मैं दिल्ली का हूँ ?
दिल्ली ने कहा नहीं,
मैं गुजरात, बंगाल, मद्रास
आदि इत्यादि मै से कहीं का नहीं हूँ
ऐसा सबने कहा?

मैं भारत का हूँ
मैंने कहा।

तब एक शर्म से मरने लगा,
तो मैंने उसे बचाया,
कहा तुम अब मेरे हो,
मैंने देखा मेरे पीछे एक पूरी नदी है,
दूसरा आया और कहा
तुम सबसे ख़तरनाक हो,
क्योंकि तुम हर जगह के हो,
तब एक ने लगातार दूसरे को जवाब दिया
और समय बदल गया।      
     
वेब पहाड़नामा से....जयप्रकाश पंवार 'जेपी'

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